शनिवार, 28 अगस्त 2010

सच क्या है?.......


[ सोन भद्र अपने उदगम स्थल पर ] पर्यावरण पर कितने जागरूक है, हम व हमारी सरकार

[
नदी में बहता दूषित जल ]



सोन भद्र भारत की पवित्र नदियों में मानी जाती हैं इनका उदगम अमरकंटक से हुआ है । शहडोल जिले से होके यह नदी गुजराती है।

इसी नदी के करीब अमलाई नामक स्थान पर ओरियंट पेपर मिल की अस्थापना सन १९६५ में हुयी। मिल द्वारा नदी में अस्थाई रेत बाँध का निर्माण कर नदी का पूरा जल प्रवाह रोक लिया जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप नदी के कुल जल प्रवाह का मात्र २०% जल ही नदी में प्रवाहित होता है। ग्रीष्म काल में नदी में रेत बाँध के निचले हिस्से से सीपेज के रूप में निकलने वाला व् मिल द्वारा छोड़े जाने वाला दूषित जल ही बहता है। पेपर मिल प्रति दिन एक करोड़ साठ लाख गैलन से अधिक दूषित जल नदी में छोड़ती है। जिसमे निम्नलिखित हानिकारक रासायनिक द्रव्य अन्य अपशिष्ट पदार्थ मिले होते है, जिन्हें सल्फाईट वेस्ट,क्राफ्ट पल्प मिल वेस्ट हाइडोजन सल्फाईट, सोडियम कार्वोनेट, सोडियम सल्फेट, टरपेटाइन, मिथाइल अल्कोहल, बेन्जाइन, ग्राउंड पल्प मिल वेस्ट , के नाम से जाना जाता है। अतिसय घातक इन द्रव्यों व अपशिष्ट पदार्थो की वजह से जल में आवश्यक आँक्सीजन की मात्र में भारी कमी आ जाती है,व तेजाबीपन ९.४ डिग्री तक पहुच जाता है। किसी भी जल में इतने विषैले द्रव्य व अपशिष्ट पदार्थ मिले हो ,तो आप खुद अंदाजा लगा सकते है कि इसके प्रभाव में आने वाले मनुष्यों,पशुओ, जल- जीवो पर इसका क्या असर पड़ता होगा। कहने को तो कई बार इस विषय पर कार्यवाही का ड्रामा शासन की और से हुआ और होता है ,परन्तु ठोस परिणाम आज तक नही निकले। कारण है कम्पनी का प्रभाव क्षेत्र व पैसा ,जिसके कारण सारे नियम कायदों को ताक पर रख कोई कार्यवाही नही की जा रही है। मै इस विषय को लेकर कई बार अनशन में बैठा, मिल से लिखित समझौता भी हुआ । उसकी प्रतिलिप माननीय प्रधान न्यायधीश उच्चतम न्यायालय को दी गई पर उसका पालन आज तक नही किया गया। विरोध स्वरूप मैने सोन नदी के किनारे निवास कर खाने पीने नहाने में बह रहे दूषित जल का उपयोग किया। जल के उपयोग से जब मेरा स्वास्थ बिगड़ने लगा,व हालत गंभीर हो गई ,तो जिला प्रशासन ने मुझे गिरफ्तार कर अस्पताल में भर्ती करा दिया। लेकिन दोषी जनों के खिलाफ कोई कार्यवाही नही हुयी । मैने थाने में इस बिषय की रिपोर्ट भी दर्ज करायी,पर कार्यवाही नही हुयी। मै पुन:नदी किनारे निवास कर दूषित जल का उपयोग अपने दैनिक दिनचर्या में करने लगा। तात्कालिक मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुझे बुला कर पानी न पीने की सलाह व उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया। तात्कालिक भा.ज.पा.प्रदेश अध्यक्ष नंद्कुमार साय ने धरना स्थल में पहुचकर साफ पानी पिला कर धरना तुड़वाया,आज उन्ही की सरकार है, पर सोन नदी जल प्रदूषण की स्थित वही है? यह है हमारे नेताओं के आश्वासन का परिणाम। [अगले अंक में प्रस्तुत कर रहा हूँ,सी.डी.चित्रों,पत्राचारों ,वार्तालापों,के माध्यम से सोन नदी जल प्रदूषण की कार्यवाही में बिलम्ब के ठोस प्रमाण,जो साबित करते है,की प्रभावशाली व्यक्ति के आगे कैसे हमारी व्यवस्था घुटने टेक देती है,पर्यावरण के मामले में दुनिया को नसीहत देने वाली हमारी सरकार अपने देश में इस स्थित से कैसे निपटाती है?] क्रमश:

विक्रम

3 टिप्‍पणियां:

  1. Vikram ji....ye hi to rona hai..ki koi bhi jimmedaari samjhne ko taiyaar hi nahin....

    Apki ye post aankhe kholne vaali hai.

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  2. यहां व्‍यक्‍त चिंता वाजिब है, सोन के उद्गम के तथ्‍य पर संशोधन हेतु विचार कर सकते हें-
    http://akaltara.blogspot.com/2011/08/1952-53.html
    थोड़ी चर्चा मैंने यहां की है.

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