बुधवार, 1 सितंबर 2010

कहाँ नयन मेरे रोते हैं .........

कहाँ नयन मेरे रोते हैं

पलक रोम में लख कुछ बूदें
या टूटे पा मेरे घरौंदे

सोच रहे हों बस इतने से ,नहीं रात भर हम सोते हैं

जो जोडा था वह तोड़ा हैं
मिथ्या सपनों को छोडा हैं

पा करके अति ख़ुशी नयन ये,कभी-कभी नम भी होते हैं

बीते पल के पीछे जाना
हैं मृग-जल से प्यास
बुझाना

खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं


vikram [पुन:प्रकाशित ]

4 टिप्‍पणियां:

  1. "Khokar jeene mein bhi saathi,kuchh anjane sukh hote hain"...Bahut sundar abhivyakti.
    http://sharmakailashc.blogspot.com/

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  2. खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं
    bahut khub

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  3. प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।

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