यह अतीत से कैसा बंधन
म्रदुल बहुत थी मेरी इच्छा
देख तुम्हारी हाय अनिच्छा
तोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन
यह अतीत से कैसा बंधन
मौंन ह्रदय से तुम्हे बुलाया
अपनी ही प्रतिध्वनि को पाया
मेरे भाग्य-पटल पर अंकित,उस क्षण के तेरे उर क्रंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
चिर-अभाव में आज समाया
कैसी परवशता की छाया
यादों की इस मेह-लहर का,क्यूँ करता हूँ मै अभिनंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
vikram
बहुत उम्दा प्रवाहमयी रचना.
जवाब देंहटाएंयह अतीत से कैसा बंधन
जवाब देंहटाएंचिर-अभाव में आज समाया
कैसी परवशता की छाया
यादों की इस मेह-लहर का,क्यूँ करता हूँ मै अभिनंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
Ateet hamari jeevan kee neev hota hai...yahi to wo bandhan hai ,jise aapne itne sundar alfazon me bayan kiya hai!
प्रभावशाली रचना ......
जवाब देंहटाएंपढ़कर अच्छी लगी.
सुंदर कविता .बधाई
जवाब देंहटाएंकोमल भाव लिए सुन्दर कविता. मन छू गयी.
जवाब देंहटाएं