शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

आ साथी,अब दीप जलाएँ ......

आ साथी, अब दीप जलाएँ
लगी निशा होने है, गहरी
घोर तिमिर होगा अब प्रहरी
अपनी अभिलाषाओं को फिर से,निंद्रा-पथ की राह दिखाएँ
आ साथी, अब दीप जलाएँ
है पावस की रात अँधेरी
घन-बूँदों की सुन कर लोरी
शायद नीड़-नयन में लौटे,हमसे रुठी कुछ आशाएँ
आ साथी,अब दीप जलाएँ
आयेगी उषा की लाली
नही रात ये रहने वाली
दीपशिखा की इस झिलमिल में,हम सपनों के महल सजाएँ
आ साथी,अब दीप जलाएँ
vikram

2 टिप्‍पणियां:

  1. दीपशिखा की इस झिलमिल में,हम सपनों के महल सजाएँ
    आ साथी,अब दीप जलाएँ
    kitni pyari tamanna hai!

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