रात्रि लगभग दो बजे किसी ने दरवाजे पे दस्तक दी। देखा तो दरवाजे पे एक बूढी औरत फटे हाल कपडो में खडी थी । उसने इशारों से मुझसे खाने के लिए कुछ देने को कहा। उसके हाव भाव से लग रह था, कि उसकी मानसिक स्थित ठीक नही है। मैने रसोईघर में जाकर देखा, चार पाँच रोटिया व थोड़ी सी सब्जी बची थी। वह लाकर मैने उसे दे दिया, और खाने के लिए कहा। उसने उगली से रोड की तरफ इशारा किया, ओर रोटी ले कर चली गयी । उत्सुकता बस मै भी उसके पीछे चल पड़ा। रोड में बिजली के खंभे के पास एक कुत्ता बैठा हुआ था। कुत्ते की गर्दन में घाव था, ओर उससे बदबू भी आ रही थी। वह जाकर कुत्ते के पास बैठ गयी, ओर रोटी के टुकडे सब्जी के साथ कुत्ते को खिलाने लगी। पूरी रोटियां कुत्ते को खिलाने के बाद ,उसने अपनी धोती से एक टुकडा फाड़ कर निकाला ओर कुत्ते की गर्दन में बाध दिया। और खुद जाकर एक आम के पेड़ के नीचे सो गयी। मै खुद ही नही समझ पा रहा था कि उसे क्या समझू, पागल या ममता की मूर्ति........
vikram
hrudaysparshee kahani
जवाब देंहटाएंशायद पागलपन मे भी आदमी का असली वज़ूद कायम रहता हो हम ही नहीं समझ पाते। और जागरुक होशोहवास मे भी दूसरे के प्रति अनजान से रहते हैं बहुत संवेदनशील घटना है आभार्
जवाब देंहटाएंwo sach muchu me mamta ki murti hai ,jo pagal pan me bhiapni vajud nahi chori........
जवाब देंहटाएंसुन्दर कहानी।
जवाब देंहटाएंकिसी भी संवेग की अधिकता पागलपन में परिणित होती है |उस माँ को शत -शत प्रणाम ,इसे सिर्फ पढना ही नहीं है पर इससे अपने जीवन में सुधार भी करना है ,तभी ब्लॉग में लिखना सार्थक होगा |विक्रम जी अच्छी प्रेरणा देने के लिए शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंअपनी अपनी दृष्टि है।
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
प्रेरणास्पद.
जवाब देंहटाएंshukria.
जवाब देंहटाएंthinkable incident.
ममता का रूप कैसे कहाँ दिख जाए यह आपके इस लेख से पता चलता है .बाकी अपने अपने सोचने का ढंग है
जवाब देंहटाएंOh! aap ki is kahani ne dil ko choo liya....... bahut hi achchi prastuti.....
जवाब देंहटाएंaese kisse kai dekhe hai .abhi bilkul aesi hi aurat dekh kar aa rahi hoon station par ,aur log muh banate huye usi ki taraf nihaar rahe the .is haalat me kya dard chhipa hai ise koi samajhane ki koshish nahi karata .
जवाब देंहटाएंvery emotional and touching story...
जवाब देंहटाएंji han apne hoshohwash main to ab sanvedansheelta dikhti nahi..pagalpan main hi insaan jagta hai shayad....
जवाब देंहटाएंbahut marsparshi or khubsurat rachna.
विक्रम जी,
जवाब देंहटाएंमैंने पहली बार आपकी कोई कथा/लघुकथा पढ़ी है। अभी तक तो मैं सिर्फ भाव भरे काव्य-गीतों का आंनन्द ले रहा था।
पगली या ममता की मूर्ती? यह वो प्रश्न है जो लेखक अपने पाठकों से पुछ हमारी सामाजिक दुविधा के बेनकाब करता है कि हम क्या अपनी सहिष्णुता को खो चुके हैं?
मर्मस्पर्शी कथा के लिये बधाईयाँ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
" aapki kahani ne dil ko chooo liya ..aapki lekhani ko salam "
जवाब देंहटाएं----- eksacchai { AAWAZ }
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निसंदेह वह ममता की मूर्ति थी। मगर अभिव्तक्ति से दिल भर आया। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंये अनुभव खुशी कम, पीड़ा ज़्यादा देते हैं .क्योंकि इनमें सच्चाई की झलक है .
जवाब देंहटाएंGreat one...itni kam lines mein itni sachchai aur sarthakta !!! amazing....
जवाब देंहटाएंAankhen nam kar dee aapne!
जवाब देंहटाएंAap ki rachana me kuch haquiqat se jhalaktee hai....!
जवाब देंहटाएंBahut dinon se kuchh likha nahi aapne?
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