सन १९८४ की घटना है। मै अपने चुनाव प्रचार में था । रास्ते में मेरी गाडी ख़राब हो गई. उस दिन मौसम भी खराब था , जंगली रास्ता, साथ ही शाम भी होने को आयी थी .मै गाडी रास्ते में ही छोड़ कर कर पैदल वहा से करीब ७किलोमीटर दूर खाम्हीडोल गाव के लिये चल दिया ,वहा से अन्य साधन मिल जाने की उम्मीद थी। मेरे साथ गाडी का चालक व मेरे एक सहयोगी थे। अभी हम लोग लगभग तीन किलोमीटर आये ही थे कि तेज बरसात शुरू हो गई.वे मौसम बरसात ,बचाव के कोई साधन भी नही ,हम लोग बुरी तरह भीग गये।मेरे ड्राइवर ने बताया कि बगल में एक बस्ती हॆ। अधेरा भी हो रहा था अत:हम लोग वही चले गये। चार या पाच घरो की ही वह बस्ती थी।जैसे ही हम लोग वहा पहुचे,वही का एक निवासी मुझे पहचान गया। ऒर बड़े प्रेम भाव के साथ अपने घर ले गया। वहा रहने वाले सभी खेतिहर मजदूर थे। उसने आग जलाई ,हम लोगो ने अलाव के पास बैठ कर अपने कपडो को सुखाया।कोई दूकान भी आस-पास नही थी. उसने हम लोगो के लिये भोजन की ब्यवस्था अपने पास से की । मैने पैसे देने चाहे लेकिन उसने लेने से इन्कार कर दिया। हम लोग उसके दिये कम्बल अलाव के पास बिछा कर सो गये रात्रि में बच्चे के रोने की आवाज से मै जाग गया। बच्चा माँ से खाने के लिये माग रहा था, ऒर माँ उसे समझा कर सुलाने का प्रयास कर रही थी.पति पत्नी की बातो से एहसास हो गया ,कि उनका सारा चावल हम लोगो के भोजन में ही ख़त्म हो गया था. ऒर वो लोग भूखे ही सो गए थे। किसी तरह रात बीती, सुबह बच्चे के रोने का कारण जानना चाहा,तो उसने सच्चाई को छुपाते हुये कहा की इसकी रात में रोने की आदत है । मॆने चलते वक्त जबरजस्ती कुछ पैसे दिए,वह पैसे लेने से इन्कार कर रहा था। वह मुझे छोड़ने खाम्हीडोल तक आया।उस ब्यक्ति की मेहमान नवाजी मै आज तक भूल नही पाया । काश हमारे भी दिल उतने बड़े होते।
विक्रम
बस इतना ही कहा जा सकता है कि काश..
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
kaash .......behatarin ehasaas
जवाब देंहटाएंबहुत भावुक कर देने वाला संस्मरण है मैं भी हिमाचल पंजाब मे चुनाव प्रचार के लिये बहुत गयी हूँ और ऐसी कई यादें लोगों के दुख देख कर मन द्रवित हो जाता मगर चुनाव के बाद भी कुछ नहीं हो पाता कोई एकध मामला छूड कर आभार इस घटना को साझा करने के लिये
जवाब देंहटाएंPrithvi par manavta bachi hui hai to inhi logon ke karan.
जवाब देंहटाएंसच हीं कहा आपने अमीरो के दिल छोटे और गरीबों के बड़े होते है मैंने ज्यादा दुनियादारी नहीं देखी हैं लेकिन अपना हीं अनुभव बता रही हूं मैं जिस परीवार के घर पैंईगगेस्ट रह रही थी वो तो उचित किराया लेने पर भी ठीक से खाना नहीं देती थी इसलिए अधिकतर लडकियों ने उनका पी.जी छोड दिया...यहीं है बड़े लेकिन दिल के छोटे लोगों...
जवाब देंहटाएंह्रदयस्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंमेहमाननवाजी हमारी संस्कृति में है- 'मेहमाँ जो हमारा होता है ,वह जान से प्यारा होता है ' आपका संस्मरण यही प्रदर्शित करता है
जवाब देंहटाएंshukria.touching sansmaran .
जवाब देंहटाएंइस मार्मिक संस्मरण के लिए आभार और
जवाब देंहटाएंआपके मेजबान की सहृदयता को नमन!