शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

सच क्या है ?...........

अखबार पढ रहा था,देश के ७७% लोग अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रहे है। अगर यह सच हैं,तो आजादी के बाद ये तमाम उपलब्धिया जो हर सरकार गिनाती है,इनके माइने क्या है ?कालेज की पढाई पूरी करके सन ७७ में घर आया। एक बाँध बनाने का ठेका चाचा जी ने लिया था। काम देखने के लिए मुझे वहाँ भेज दिया गया। मजदूरों की मजदूरी थी मात्र दो रूपया। मैने पचास पैसे मजदूरी बढा दी, बड़े किसानो व अन्य ठेकेदारों ने इसका बिरोध किया। चाचा जी तक बात पहुची,मुझे बुला कर पूछा, मैने बताया की काम में बचत काफी है,उस हिसाब से काम की मजदूरी कम हैं। उन्होंने हिसाब देखा, और मज़दूरों की मजदूरी तीन रुपये पचास पैसे कर दी ।उस समय मोटा चावल पचास पैसे प्रति किलो मिल जाता था। उतने पैसे में सात किलो , आज आम मजदूर की मजदूरी है,सौ रुपये प्रति दिन, बाजार में मोटा चावल हैं,सोलह रुपये किलो।

मजदूर खुले बाजार में सात किलो चावल उतने रुपये में नही खरीद सकता।परिवार ,जिसमे पति पत्नी सहित दो बच्चे हो, और उनकी आमदनी पाच सौ रुपये प्रति दिन हो,तब कही जाकर आज का खेतिहर मजदूर अपने परिवार का सही ढंग से पालन पोषण कर सकता है। आज अमीर,बड़ा अमीर ,गरीब और गरीब होता जा रहा हैं। जिम्मेदार हैं हमारे देश की वर्त्तमान व्यवस्था । क्यान्यायपालिका,व्यवस्थापिका,कार्यपालिका,सभी दोषी हैं वर्त्तमान व्यवस्था के लिए। कानून की पकड़ भी आम आदमी पर हैं, सबल का बाल बाका भी नही होता। इसी सच्चाई को उजागर करने के उद्देश्य से"सच क्या है"नाम से यह लेख प्रकाशित कर रहा हूँ,जिसकी पहली कड़ी है,पर्यावरण पर कितने जागरूक है, हम व हमारी सरकार,क्रमश.......

vikram

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