तुम धीरे से ,न कर देना
कुछ पग चलके,फिर हस देना
बीत गये जो पल सजनी फिर, उनको जैसे मै पा लुगां
मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ
कुछ क्षण बाद,चली तुम आना
मृदुल भाव से,देती ताना
मै विभोर हो तरुणाई का,गीत कोई फिर से गा लूगां
मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ
क्या होता है,नया पुराना
ऐसे ही तुम साथ निभाना
यादों की झिलमिल चुनरी से,मै श्रंगार तेरा कर दूगाँ
मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ
विक्रम
बहुत बढ़िया रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंक्या होता है,नया पुराना
जवाब देंहटाएंऐसे ही तुम साथ निभाना
यादों की झिलमिल चुनरी से,मै श्रंगार तेरा कर दूगाँ
.......बहुत सुन्दर....प्यार की सनातनता पर एक खूबसूरत अभिव्यक्ति.....
http://sharmakailashc.blogspot.com/
विक्रम जी ..बहुत ही सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस पर आपका अभिनन्दन है .
अच्छी लाईनें , बधाई ।
जवाब देंहटाएं..बहुत ही सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंsunder kavita...
जवाब देंहटाएंnice post
जवाब देंहटाएंमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल
क्या होता है,नया पुराना
जवाब देंहटाएंऐसे ही तुम साथ निभाना
यादों की झिलमिल चुनरी से,मै श्रंगार तेरा कर दूगाँ
मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ
Bahut,bahut pasand aayee ye kavita!
waah! bahut hi sundr rachna...
जवाब देंहटाएंbahut khub sundar hai
जवाब देंहटाएंआप और आप के परिवार को नव वर्ष की हार्दिक बधाई .....:)
जवाब देंहटाएंमधुर प्रस्तुति !
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