गुरुवार, 9 सितंबर 2010

मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ .......

मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ
तुम धीरे से ,न कर देना
कुछ पग चलके,फिर हस देना
बीत गये जो पल सजनी फिर, उनको जैसे मै पा लुगां
मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ
कुछ क्षण बाद,चली तुम आना
मृदुल भाव से,देती ताना
मै विभोर हो तरुणाई का,गीत कोई फिर से गा लूगां
मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ
क्या होता है,नया पुराना
ऐसे ही तुम साथ निभाना
यादों की झिलमिल चुनरी से,मै श्रंगार तेरा कर दूगाँ
मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ

विक्रम

12 टिप्‍पणियां:

  1. क्या होता है,नया पुराना
    ऐसे ही तुम साथ निभाना
    यादों की झिलमिल चुनरी से,मै श्रंगार तेरा कर दूगाँ
    .......बहुत सुन्दर....प्यार की सनातनता पर एक खूबसूरत अभिव्यक्ति.....
    http://sharmakailashc.blogspot.com/

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  2. विक्रम जी ..बहुत ही सुंदर कविता.
    हिन्दी दिवस पर आपका अभिनन्दन है .

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  3. nice post
    मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

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  4. क्या होता है,नया पुराना
    ऐसे ही तुम साथ निभाना
    यादों की झिलमिल चुनरी से,मै श्रंगार तेरा कर दूगाँ
    मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ
    Bahut,bahut pasand aayee ye kavita!

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  5. आप और आप के परिवार को नव वर्ष की हार्दिक बधाई .....:)

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